डॉ. आभा जिन्दल

 

महिलाओं में मासिक धर्म की शुरुआत लगभग 12 वर्ष से होती है। मासिक धर्म की शुरुआत महिलाओं में प्रजनन क्षमता के विकसित होने का संकेत है। सामान्य रूप से मासिक धर्म हर महीने नियमित रूप से आता है परंतु यदि गर्भधारण हो जाये तो मासिक धर्म की प्रक्रिया रुक जाती है। मासिक धर्म का चक्र लगभग 50 वर्ष की उम्र तक चलता रहता है। जिसके बाद महिला की प्रजनन शक्ति समाप्त हो जाती है। मासिक धर्म बंद होने की इसी स्थिति को मीनोपॉज़ कहा जाता है।

महिलाओं में अण्डकोष (Overies) का काम फीमेल हार्मोन एवं प्रतिमाह अण्डा बनाना है। मीनोपॉज़ के बाद अण्डकोष काम करना बंद कर देते हैं जिसकी वजह से अण्डा बनाने की प्रक्रिया बंद हो जाती है एवं शरीर में फीमेल हार्मोन (मुख्यत: ऐस्ट्रोजेन) की कमी हो जाती है। किसी भी महिला जिसे पहले मासिक धर्म आ रहा था, यदि उसे 6 माह तक मासिक धर्म न आये तो इस स्थिति को मीनोपॉज़ की पुष्टि माना जाता है। जैसा हम पहले कह चुके हैं कि यह स्थिति स्वाभाविक रूप से लगभग 50 वर्ष की उम्र में आ जाती है परंतु कुछ महिलाओं में यह अवस्था कम उम्र में अथवा कुछ वर्ष देर से भी आ सकती है। कभी-कभी सर्जरी द्वारा बच्चेदानी (Uterus) अथवा दोनों अण्डकोष (Ovaries) निकालने से भी यह स्थिति बन सकती है। जिन महिलाओं में किसी कारण बच्चेदानी मीनोपॉज़ की उम्र से पहले निकालनी पड़ जाती है उनमें, सर्जन एक अण्डकोष महिला के शरीर में बचा लेते हैं जिससे शरीर में एस्ट्रोजन की कमी न हो एवं मीनोपॉज़ की सामान्य उम्र तक महिला में मीनोपॉज़ से संबंधित परेशानियाँ न आयें।

एस्ट्रोजेन हार्मोन महिलाओं में वक्ष (Breast) एवं जननांगों के विकास एवं सामान्य स्वास्थ्य के लिये आवश्यक हैं। साथ ही इनकी वजह से महिलाओं का शरीर सुडोल दिखता है। एस्ट्रोजन की कमी होने पर हड्डियों में से कैल्शियम निकलने लगता है एवं हड्डियाँ तेज़ी से कमज़ोर होने लगती हैं। यही कारण है कि मीनोपाज़ के बाद फ्रेक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है।

यह भी देखा गया है कि ऐस्ट्रोजेन हार्मोन महिलाओं को हार्टअटैक होने से बचाते हैं। यही कारण है कि मीनोपॉज़ के पहले महिलाओं में हार्टअटैक होने की सम्भावना पुरुषों की अपेक्षा बहुत कम होती है। परंतु मीनोपॉज़ के बाद यह पुरुषों के बराबर हो जाती है। मीनोपॉज़ के बाद ऐस्ट्रोजेन की कमी का असर महिलाओं की त्वचा में भी दिखता है एवं त्वचा ढीली होने से झुर्रियाँ दिखने लगती हैं।

प्रकृति का यह नियम है कि प्रजाति के वह सदस्य जो प्रजनन शक्ति समाप्त कर चुके हैं, वह प्रजाति के लिये बोझ हैं। प्रकृति ऐसे सदस्यों का जीवन जल्द-से-जल्द समाप्त करना चाहती है। यदि हम जानवरों के जीवन चक्र को देखें तो प्रजनन क्षमता का अंत एवं जीवन का अंत बहुत पास-पास होता है। परंतु मनुष्यों में महिलायें मीनोपॉज़ के बाद भी 25 से 30 साल और जीना चाहती हैं। प्रकृति के इसी नियम के कारण मीनोपॉज़ के बाद महिलाओं में अनेक विकार एवं बीमारियाँ आने लगती हैं। कल्पना करें कि जब हम हज़ारों साल पहले जंगल में रह रहे थे तब किसी महिला को हार्ट अटैक हो जाये या कूल्हे की हड्डी टूट जाये तो उसका जीवन कितने दिन चल सकता है।

उम्र के अलावा मीनोपॉज़ के अन्य कारण :-

1) सर्जरी – जैसा हम पहले ही कह चुके हैं यदि किसी कारण से किसी महिला को बच्चेदानी अथवा दोनों अण्डकोषों को निकालना पड़ सकता है तो उम्र से पहले ही मीनोपॉज़ आ सकता है।

2) उन महिलाओं को जिन्हें किसी प्रकार के कैंसर के लिये दवाईयाँ या रेडियेशन की सिकाई द्वारा इलाज किया हो उनमें भी अण्डकोष नष्ट हो जाने की वजह से मीनोपॉज़ की स्थिति बन सकती है।

3) कभी-कभी आटोइम्यून बीमारियों के कारण अण्डकोष नष्ट हो जाते हैं तो महिला को 40 वर्ष की उम्र से पहले ही मीनोपॉज़ आ जाता है। ऐसी स्थिति को प्रीमेच्योर ओवेरियन फेलियर (Premature Overian Failure) कहते हैं। इन महिलाओं में अक्सर थायरॉयड की बीमारी भी साथ में हो सकती है।

मीनोपॉज़ के लक्षण :

1) मासिक धर्म की गड़बड़ी सामान्यत:- मीनोपॉज़ एक धीरे-धीरे आने वाली अवस्था होती है। पूर्ण मीनोपॉज़ के

2) पहले मासिक धर्म अनियमित होने लगता है। कुछ महिलाओं में मासिक धर्म में अत्याधिक खून जाना एवं अन्य में कम खून जाना भी सम्भव है। मीनोपाज़ के पहले मासिक धर्म साल में तीन-चार बार ही अनियमित रूप से हो यह भी सम्भव है। कुछ महिलाओं में अत्यधिक खून जाने के कारण बच्चेदानी निकलवाने का ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।

3) गर्मी के भपके (Hot Flashes) : मीनोपॉज़ आने के पहले एवं मासिक धर्म बंद होने के बाद कई महीनों अथवा सालों तक महिलाओं में एक बड़ी परेशानी अनेक बार एकाएक तेज़ गर्मी लगना पसीने छूट जाने की होती है। ये परेशानी महिलाओं के लिये बहुत कष्टकारी होती है। इस स्थिति को हॉट फ्लेशेस (Hot Flashes) भी कहते हैं जिसमें एकाएक तेज़ गर्मी लगना, पसीना आना एवं घबराहट होना पाया जाता है। यह स्थिति 51 0 मिनट तक रहती है एवं रात में सोते समय भी हो सकती है। अक्सर देखा गया है कि महिलायें इस स्थिति में पंखा, कूलर या एसीचलाने को कहती हैं। जबकि परिवार के अन्य सदस्य बंद करने को कहते हैं।

4) सेक्स में परेशानी :- मीनोपॉज़ के बाद एस्ट्रोजेन की कमी की वजह से यौनि में सूखापन रहने लगता है जिसकी वजह से सहवास के समय महिलाओं को दर्द होने लगता है। मीनोपॉज़ के बाद ऐस्ट्रोजेन की कमी की वजह से महिलाओं की सेक्स के प्रति रुचि भी कम हो जाती है।

5) पेशाब संबंधी परेशानियाँ :- ऐस्ट्रोजेन की कमी की वजह से पेशाब की नली मे भी परिवर्तन होने लगते हैं, जिसकी वजह से महिलायें पेशाब रोक नहीं पाती एवं खाँसी करने, छींक आने अथवा ज़ोर से हँसने पर अनैच्छिक रूप से पेशाब निकल जाती है। इसे युरिनरी इनकॉटिनेन्स कहते हैं। इसके साथ ही बार-बार पेशाब जाने की इच्छा होना भी मीनोपॉज़ में सामान्यत: देखा जाता है। पेशाब के रास्ते में बार-बार इन्फेक्शन होना एवं जननांगों में खुजली होना भी सम्भव है।

6) मनोदशा में बदलाव (Mood Changes) :- मीनोपॉज़ के समय हार्मोन के स्तर में उतार-चढ़ाव के कारण चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, चिन्ता एवं थकान आदि अधिकांश महिलाओं में देखा जाता है। हॉट फ्लेशेस की वजह से नींद पूरी न हो पाना भी इसका कारण हो सकता है।

7) शारीरिक बदलाव :- मीनोपॉज़ के साथ अनेक शारीरिक बदलाव होते हैं, कई महिलाओं में वज़न बढऩे लगता है। शरीर की चर्बी हाथों-पैरों, जाँघों व नितम्बों से कम होकर पेट एवं कमर पर ज्यादा होने लगती है। ऐस्ट्रेजन की कमी के कारण ठुड्डी एवं होटों के आस-पास बाल आने लगते हैं एवं त्वचा में झुर्रियाँ दिखने लगती हैं।

8) हड्डियाँ कमज़ोर होना (ऑस्टियोपोरोसिस) :- गिरने, फिसलने अथवा छोटी-मोटी चोट से हड्डियों में फ्रेक्चर हो जाना मीनोपॉज़ के बाद महिलाओं में आम बात है। हड्डियों के कमज़ोर होने के कारण कभी-कभी रीढ़ की हड्डी पिचक जाती है जिसकी वजह से महिला सामने की ओर झुक कर चलने लगती है। हड्डियों के क्षरण के कारण महिलाओं की ऊँचाई 1 से 3 इंच तक कम हो सकती है।

उपचार एवं देखभाल :

जैसा कि हम बात कर चुके हैं कि मीनोपॉज़ के बाद हड्डियाँ कमज़ोर होने लगती है। ऐसी स्थिति में फ्रेक्चर से बचने के लिये महिलाओं को भोजन में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम लेना चाहिये। भोजन में कैल्शियम का मुख्य स्रोत दूध, सूखे मेवे आदि हैं। डॉक्टर आपको कैल्शियम एवं विटामिन डी की गोलियाँ लेने के लिये भी कह सकते हैं। नियमित व्यायाम एवं पैदल चलने से भी हड्डियाँ मज़बूत होती हैं। मीनोपॉज़ के बाद बढ़ती उम्र की महिलाओं को गिरने से बचने के भी उपाय करने चाहिये। कूल्हे की हड्डी टूटने का एक मुख्य कारण बाथरूम की चिकनी फर्श पर फिसल कर गिर जाना है। बाथरूम की फर्श पर रबर की मेट डाल कर इससे बचा जा सकता है।


हॉट फ्लेशेस को रोकने का सबसे अच्छा उपाय ऐस्ट्रोजेन हार्मोन देना है। परंतु एस्ट्रोजन हार्मोन बच्चेदानी में कैन्सर पैदा कर सकता है जिसके बचाव के लिये ऐस्ट्रोजेन के साथ प्रोजेस्ट्रान नामक हार्मोन भी देना ज़रूरी है। ऐस्ट्रोजन एवं प्रोगेस्ट्रोन की मिली-जुली गोली मीनोपॉज़ के बाद देने के बारे में चिकित्सा विज्ञान में आम सहमति नहीं है। बूढ़ी महिलाओं में ये दोनों हार्मोन देने पर ब्रेस्ट कैंसर, पक्षाघात एवं पैरों की नसों में खून का थक्का जमने का खतरा बढ़ जाता है। अत: यह दवाई मीनोपॉज़ के तुरन्त बाद कुछ माह के लिये ही दी जा सकती है। जिन महिलाओं में शल्य चिकित्सा द्वारा बच्चेदानी निकाल दी गई है, उन्हें अकेले एस्ट्रोजेन की दवाई लम्बे समय तक दी जा सकती है। नये शोध से पता चला है कि डिप्रेशन की बीमारी में दी जाने वाली दवाईयाँ भी हॉट फ्लेशेस को रोकने में कारगर हैं एवं इनसे मनोदशा में होने वाले प्रभावों को भी कम किया जा सकता है।


जिन महिलाओं में पेशाब एवं यौनि संबंधित समस्याएँ ज्यादा होती है उनमें यौनि में एस्ट्रोजन क्रीम की दवाई से बहुत फायदा होता है एवं शरीर के अन्य भागों में एस्ट्रोजेन के दुष्प्रभाव भी नहीं होते हैं। सहवास के समय दर्द से बचने के लिये यौनि में चिकनाई युक्त क्रीम, बाज़ार में उपलब्ध है इनका उपयोग महिलायें कर सकती हैं।


साथियों इस तरह हमने देखा कि मीनोपॉज़ महिला की जि़न्दगी में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है जो अपने साथ अनेक चुनौतियाँ लेकर आता है। आशा है इस लेख से आप इन चुनौतियों का सही तरीके से सामना कर सकेंगे।